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अनकही बातें (कविता)
तुम्हारो नीरज नयन निहारू कमल कदम में जीवन वारु जानत हो जग की रीत सदा से फिर भी प्रेम की आस लगावत तुम जग के जीवन जाता हो फिर क्यों जीवन बाधा हे सुख संसार, प्रेम प्रेमिका, मातृ पिता वे सह संबंधि सब रहे तुमसे थे दुरा जन्म पूर्व हुई मृत्यु सज्जा मातृ पिता भये दुरि लंका गुकुल के भए बालक स्वामी यशोदा के मनमोहन कृष्ण ननद के नंदलाला तुम हो जीवन के क्षण क्षण देखो भंगा कभी पूतना तो कभी असुरपति सदा रहा मृत्यु मंडरावत फिर भी रहे सदा मुस्कुरावत तुम्हारो नीरज नयन निहारु कमल कदम में जीवन वारु स्नेह संसार को तुम ही बाटा खुद से खुद की राधा छाटा मुरली की भई तान पुरनी जगत न समझे प्रेम तुम्हारी राधा की तुम प्रीत पुरानी मुरली की वो धुन पहचानी मोरपंख धारी, पीताम्बर धारी श्याम सुंदर से पूर्ण की रुक्मणी ने अपनी चित्रकारी प्रेम लगन थी चारो औरा प्रेमीका से विरह वेदना देखि दूरि गोकुल मथुरा प्रेम तरासने गये तुम मथुरा वाहा बजाई कंस पर अपनी विजय डंका धर्म स्थापना का पहला चरण था चरम पर आना बड़ा कठिन था तुम सुदर्शन चक्रधारी फ़िर भी कहलये रणछोड़ बिहारी तुम्हारो नीरज नयन निहारु कमल कदम मे जीवन वारु राधा रानी प्रेम पुजारण रुक्मणी बनी प्रेम अधिकारी सोलह सौ सौभाग्य पाये चरित्र पर अपने दाग लागावाये जग ना जाने प्रीत तुम्हारी लज्जा के बने तुम अधिकारी पीढ़ा भई ना तुमसे दुरा फ़िर भी रहे सदैब स्मिता रूचिर नगर रचित तिहारो द्वारका के हो अवनीश हमारो सेरंध्री,सुदामा के सहयोगी हो तुम महाभारत के भये मुखय रचायिता मानव के इस रूप मे तुमने जाने क्या क्या देखा है वंश का पतन देखा,बर्बरिक का मस्तक देखा द्रौपदी का चीर हरण, अभिमन्यु का अकाल मरन कुरुक्षेत्र की भूमि मे विश्व का विध्वंस देखा धर्म स्थापना सरल नही था गीता ज्ञान से प्रकाश किया अन्धकार की माया से उज्ज्वल ये आकाश किया कई बलिदान के वाबजुद भी,श्राप झोली मे थे भरे गांधारी के श्राप से मेरी द्वारका जलमगन हुई राधिका की याद ने मेरे हृदय को चीर दीया अपनी मुरली धुन मे भुला गोकुल गालियो से अंजान हुआ दो मैया होते हुए भी मातृ प्रेम से दूर हुआ माखन चोर होते हुए भी न्यायधीश मे बन गया सुदर्शन चक्रधारी भी अब यू हे रणछोड़ बना तुम जगकार्ता हो अधिकारी बलिदान की मूरत प्यारी तुम्हारो नीरज नयन निहारू कमल कदम मे जीवन वारु कृष्णयी को तो चिर हरण से तुमने था बचा लिया कलयुग की सखी तुम्हारी फ़िर क्यु हैं अपमानित हुई क्या तुम करते भेदभाव हो जो यू मूरत मे पूज रहे हो मीरा भी भई प्रेम पुजारण मुरली धुन हुई सीतार समर्पण तुम पर किया जीवन को अर्पण विष हुआ अमृत का दर्पण जनम से मृत्यु का सफर तराशा पीढ़ा समक्ष मे मुस्कान निहारा तुम्हारी लीला भई प्रसिद्धा गोकुल द्वारिका चारो लोका राधा रानी बनी प्रेम पुजारण रुक्मणी बनी प्रेम अधिकरण मीरा भई संसार से दुरा तुम ही जानो नटखट्ट मोरा मे तुम्हारी भई जा रही हू तुम्हारो नीरज नयन निहारु कमल कदम में जीवन वारु