वाक्यविज्ञान (Syntax) के अंतर्गत किसी भाषा में शब्द या पद एवं पद समूहों से वाक्य बनने की प्रक्रिया का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। नोम चॉम्स्की ने वाक्यविज्ञान को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, "वाक्यविज्ञान उन सिद्धांतों और प्रक्रियाओं का अध्ययन है जिनसे भाषा विशेष में वाक्य गठित होते हैं।" (Syntax is the study of the principles and processes by which sentences are constructed in particular language.[1]

वाक्यविज्ञान के संबंध में भोलानाथ तिवारी का मत है कि इसमें वाक्य-गठन या 'पद' से वाक्य बनाने की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है।[2] देवेन्द्रनाथ शर्मा मानते हैं कि "वाक्यविज्ञान भाषाविज्ञान की वह शाखा है, जिसमें पदों के पारस्परिक संबंध का विचार किया जाता है।"[3] उपर्युक्त परिभाषाओं के आलोक में माना जा सकता है कि वाक्यविज्ञान भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसमें किसी भाषा की वाक्य-संरचना-प्रक्रिया एवं उससे संबंधित सामान्य सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है।

सामान्यतः वाक्यविज्ञान का अध्ययन तीन रूपों में किया जाता है[4] :

1. वर्णनात्मक वाक्यविज्ञान
वर्णनात्मक वाक्यविज्ञान को एककालिक या समकालिक वाक्यविज्ञान भी कहते हैं। इसमें किसी भाषा में किसी एक निश्चित काल में प्रचलित वाक्य-गठन का अध्ययन-विश्लेषण किया जाता है। एक भाषा के एक ही काल में वाक्य-गठन के भिन्न-भिन्न रूप दिख सकते हैं। एक ही काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र का वाक्य-गठन कुछ इस प्रकार है - "बंगाली, मरट्ठा, पंजाबी, मदरासी, वैदिक, जैन, ब्राह्मणों, मुसलमानों सब एक का हाथ एक पकड़ो। कारीगरी जिससे तुम्हारे यहाँ बढ़े तुम्हारा रुपया तुम्हारे ही देश में रहे वह करो। देखा जैसे हजार धारा होकर गंगा समुद्र में मिली है वैसे ही तुम्हारी लक्ष्मी हजार तरह से इंग्लैंड, फरांसीस, जर्मनी, अमेरिका को जाती है।" ('भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है' निबंध से) इसी तरह हम भारतेंदु युगीन देवकीनंदन खत्री के वाक्य-गठन को देखें तो वह हमें कुछ भिन्न प्रतीत होगा - "शाम का वक्त है, कुछ-कुछ सूरज दिखाई दे रहा है, सुनसान मैदान में एक पहाड़ी के नीचे दो शख्स वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह एक पत्थर की चट्टान पर बैठ कर आपस में बातें कर रहे हैं।" ('चंद्रकांता' उपन्यास से)इसी तरह स्वातंत्र्योत्तर युग में रेणु के वाक्य गठन को देखें - "एक तो पीठ में गुदगुदी लग रही है। दूसरे रह-रह कर चंपा का फूल खिल जाता है उसकी गाड़ी में। बैलों को डांटो तो ‘इस-बिस’ करने लगती है उसकी सवारी। उसकी सवारी! औरत अकेली, तंबाकू बेचनेवाली बूढ़ी नहीं!" ('तीसरी कसम' कहानी से) अब निर्मल वर्मा की भाषा देखिए - "लतिका को लगा कि जो वह याद करती है, वही भूलना भी चाहती है, लेकिन जब सचमुच भूलने लगती है, तब उसे भय लगता है कि जैसे कोई उसकी किसी चीज को उसके हाथों से छीने लिये जा रहा है, ऐसा कुछ जो सदा के लिए खो जायेगा।" ('परिंदे' कहानी से)
2. ऐतिहासिक वाक्यविज्ञान
ऐतिहासिक वाक्यविज्ञान के अंतर्गत किसी भाषा के विभिन्न कालों में प्रयुक्त वाक्यों का विकासात्मक अध्ययन किया जाता है। जैसे हिन्दी में ही पहले लोग कहते थे कि - "आँखों से देखी घटना।" अब परिवर्तन होते होते यही वाक्य "आँखों देखी घटना।" में बदल गया है। अमीर खुसरो के दो सखुने से भारतेंदु युग के दो सखुने तक का वाक्य-गठन तथा भारतेंदु युग की खड़ी बोली हिंदी से आज तक की खड़ी बोली हिंदी के विकास की प्रक्रिया में प्रयुक्त वाक्यों का विकासात्मक अध्ययन इसके अंतर्गत देखा जा सकता है।
3. तुलनात्मक वाक्यविज्ञान
इसके अंतर्गत दो या उससे अधिक भाषाओं में प्रयुक्त वाक्यों की रचना-प्रक्रिया और उससे संबद्ध सिद्धांतों का तुलनात्मक विवेचन किया जाता है। इसमें तुलनात्मक दृष्टि से विभिन्न भाषाओं के वाक्यों का कालक्रमिक अध्ययन भी किया जाता है। जैसे हम देख सकते हैं कि अंग्रेजी में वाक्य गठन में पहले कर्ता फिर क्रिया और फिर कर्म आता है (He likes him.)। वही हिन्दी में कर्म कर्ता के बाद आता है (वह उसको पसंद करता है।)। हिन्दी में कर्ता के अनुसार क्रिया में भी परिवर्तन होता है। जैसे - राम जाता है, सीता जाती है आदि। इसके अलावा हिंदी में कर्म के आधार पर भी क्रिया में परिवर्तन होता है, जैसे:- राम ने रोटी खायी, सीता ने आम खाया आदि। यहां रोटी स्त्रीलिंग है और आम पुल्लिंग है। यह प्रवृत्ति संस्कृत में नहीं देखी जाती। वहाँ रामः गच्छति, सीता गच्छति होगा। हिंदी में लिंग के अनुसार वाक्य में क्रिया आदि में बदलाव होता है। कह सकते हैं कि क्रिया देखकर हिंदी में लिंग निर्धारण संभव है, लेकिन संस्कृत में यह प्रवृत्ति नहीं है। संस्कृत में कर्ता के आधार पर लिंग का निर्धारण होता है। निर्जीव नपुंसक लिंग, अकारांत कर्ता पुलिंग तथा आकारांत या ईकारांत कर्ता स्त्रीलिंग होता है।

संदर्भ सम्पादन

  1. Chomsky, Noam. Syntactic Structures (PDF) (1985 ed.). The Hague, Paris: Mouton Publishers. p. 11. ISBN 90-279-3385-5. 
  2. तिवारी, भोलानाथ. भाषाविज्ञान (1951 ed.). इलाहाबाद: किताब महल प्राइवेट लिमिटेड. p. 207. 
  3. शर्मा, देवेन्द्रनाथ; शर्मा, दीप्ति. भाषाविज्ञान की भूमिका (2018 ed.). दिल्ली: राधाकृष्ण प्रकाशन. p. 241. ISBN 978-81-7119-743-9. 
  4. झा, सीताराम. भाषा विज्ञान तथा हिन्दी भाषा का वैज्ञानिक विश्लेषण (2015 ed.). पटना: बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी. p. 191. ISBN 978-93-83021-84-0.